Friday 6 January 2012

Sai Satcharitra Hindi Chp 26

Sai Satcharitra Hindi chap 26

श्री साई सच्चरित्र

अध्याय 26 - भक्त पन्त, हरिश्चन्द्र पितले और गोपाल आंबडेकर की कथाएँ


इस सृष्टि में स्थूल, सूक्ष्म, चेतन और जड़ आदि जो कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है, वह सब एक ब्रहृ है और इसी एक अद्घितीय वस्तु ब्रहृ को ही हम भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित करते तथा भिन्न-भिन्न दृष्टियों से देखते है । जिस प्रकार अँधेरे में पड़ी हुई एक रस्सी या हार को हम भ्रमवश सर्प समझ लेते है, उसी प्रका हम समस्त पदार्थों के केवल ब्रहृ स्वरुप को ही देखते है, न कि उनके सत्य स्वरुप को । एकमात्र सदगुरु ही हमारी दृष्टि से माया का आवरण दूर कर हमें वस्तुओं के सत्यस्वरुप का यथार्थ में दर्शन करा देने में समर्थ है । इसलिये आओ, हम श्री सदगुरु साई महाराज की उपासना कर उनसे सत्य का दर्शन कराने की प्रार्थना करे, जो कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ।


आन्तरिक पूजन

श्री. हेमाडपंत उपासना की एक सर्वथा नवीन पद्घति बताते है । वे कहते है कि सदगुरु के पादप्रक्षालन के निमित्त आनन्द-अश्रु के उष्ण जल का प्रयोग करो । उन्हें सत्यप्रेमरुपी चन्दन का लेप कर, दृढ़विश्वासरुपी वस्त्र पहिनाओ तथा अष्ट सात्विक भावों के स्थान पर कोमल और एकाग्र चित्तरुपी फल उन्हें अर्पित करो । भावरुपी बुक्का उनके श्री मस्तक पर लगा, भक्ति की कछनी बाँध, अपना मस्तक उनके चरणों पर रखो । इस प्रकार श्री साई को समस्त आभूषणों से विभूषित कर, उन्हें अपना सर्वस्व निछावर कर दो । उष्णता दूर करने के लिये भाव की सदा चँवर डुलाओ । इस प्रकार आनन्ददायक पूजन कर उनसे प्रार्थना करो –

हे प्रभु साई । हमारी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी बना दो । सत्य और असत्य का विवेक दो तथा सांसारिक पदार्थों से आसक्ति दूर कर हमें आत्मानुभूति प्रदान करो । हम अपनी काया और प्राण आपके श्री चरणों में अर्पित करते है । हे प्रभु साई । मेरे नेत्रों को तुम अपने नेत्र बना लो, ताकि हमें सुख और दुःख का अनुभव ही न हो । हे साई । मेरे शरीर और मन को तुम अपनी इच्छानुकूल चलने दो तथा मेरे चंचल मन को अपने चरणों की शीतल छाया में विश्राम करने दो ।


भक्त पन्त

एक समय एक भक्त, जिनका नाम पंत था और जो एक अन्य सदगुरु के शिष्य थे, उन्हें शिरडी पधारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनकी शिरडी आने की इच्छा तो न थी, परन्तु मेरे मन कछु और है, विधिना के कुछ और वाली कहावत चरितार्थ हुई । वे रेल (पश्चिम रोल्वे) द्घारा यात्रा कर रहे थे, जहाँ उनके बहुत से मित्र व सम्बन्धियों से अचानक ही भेंट हो गई, जो कि शिरडी यात्रा को ही जा रहे थे । उन लोगों ने उनसे शिरडी तक साथ-साथ चलने का प्रस्ताव किया । पंत यह प्रस्ताव अस्वीकार न कर सके । तब वे सब लोग बम्बई में उतरे और इसी बीच पन्त विरार में उतर अपने सदगुरु से शिरडी प्रस्थान करने की अनुमति लेकर तथा आवश्यक खर्च आदि का प्रबन्ध कर, सब लोगों के साथ रवाना हो गये । वे प्रातःकाल वहाँ पहुँच गये और लगभग 11 बजे मसजिद को गये । वहाँ पूजनार्थ भक्तों का एकत्रित समुदाय देख सब को अति प्रसन्नता हुई, परन्तु पन्त को अचानक ही मूर्च्छा आ गई और वे बेसुध होकर वहीं गिर पड़े । तब सब लोग भयभीत होकर उन्हें स्वस्थ करने के समस्त उपचार करने लगे । बाबा की कृपा से और मस्तक पर जल के छींटे देने से वे स्वस्थ हो गये और ऐसे उठ बैठे, जैसे कि कोई नींद से जगा है । त्रिकालज्ञ बाबा ने यह सब जानकर कि यह अन्य गुरु का शिष्य है, उन्हें अभय-दान देकर उनके गुरु में ही उनके विश्वास को दृढ़ करते हुए कहा कि कैसे भी आओ, परन्तु भूलो नही, अपने ही स्तंभ को दृढ़तापूर्वक पकड़कर सदैव स्थिर हो उनसे अभिन्नता प्राप्त करो । पन्त तुरन्त इन शब्दों का आशय् समझ गये और उन्हें उसी समय अपने सदगुरु की स्मृति हो आई । उन्हें बाबा के इस अनुग्रह की जीवन भर स्मृति बनी रही ।


हरिश्चन्द्र पितले

बम्बई में एक श्री. हरिश्चन्द्र पितले नामक सदगृहस्थ थे । उनका पुत्र मिर्गी रोग से पीड़ित था । उन्होंने अनेक प्रकार की देशी व विदेशी चिकित्सायें कराई, परन्तु उनसे कोई लाभ न हुआ । अब केवल यही उपाय शेष रह गया था कि किसी सन्त के चरण-कमलों की शरण ली जाय । 15वें अध्याय में बतलाया जा चुका है कि श्री. दासगणू के सुमधुर कीर्तन से साईबाबा की कीर्ति बम्बई में अधिक फैल चुकी थी । पितले ने भी सन् 1910 में उनका कीर्तन सुना और उन्हें ज्ञात हुआ कि श्री साईबाबा के केवल कर-स्पर्श तथा दृष्टिमात्र से ही असाध्य रोग समूल नष्ट हो जाते है । तब उने मन में भी श्री साईबाबा के प्रिय दर्शन की तीव्र इच्छा जागृत हो जाते है । यात्रा का प्रबन्ध कर भेंट देने को फलों की टोकरी लेकर स्त्री और बच्चों सहित वे शिरडी पधारे । मसजिद पहुँचकर उन्होंने चरण-वंदना की तथा अपने रोगी पुत्र को उनके श्री-चरणों में डाल दिया । बाबा की दृष्टि उस पर पड़ते ही उसमें एक विचित्र परिवर्तन हो गया । बच्चे ने आँखें फेर दी और बेसुध हो कर गिर पड़ा । उसके मुँह से झाग निकलने लगी तथा शरीर पसीने से भीग गया और ऐसी आशंका होने लगी कि अब उसके प्राण निकलने ही वाले है । यह देखकर उसके माता-पिता अत्यंत निराश होकर घबड़ाने लगे । बचेचे को बहुधा थोड़ी मूर्च्छा तो अवश्य आ जाया करती थी, परन्तु यह मूर्च्छा दीर्घ काल तक रही । माता की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी और वह दुःखग्रसित हो आर्तानाद करने लगी कि मैं ऐसी स्थिति में हूँ, जैसे कि एक व्यक्ति, चोरों के डर से भाग कर किसी घर में प्रविष्टि हो जाय और वह घर ही उसके ऊपर गिर पड़े, या एक भक्त मन्दिर में पूजन के लिये जाय और वह मन्दिर में ही उसके ऊपर गिर पड़े या एक गाय शेर के डर से भागकर किसी कसाई के हाथ लग जाय, या एक स्त्री सूर्य के ताप से व्यथित होकर वृक्ष की छाया में जाये और वह वृक्ष ही उसके ऊपर गिर पड़े । तब बाबा ने सान्त्वना देते हुये कहा कि इस प्रकार प्रलाप न कर, धैर्य धारण करो । बच्चे को अपने निवासस्थान पर ले जाओ । वह आधा घण्टे के पश्चात् ही होश में आ जायेगा । तब उन्होंने बाबा के आदेश का तुरन्त पालन किया । बाबा के वचन सत्य निकले । जैसे ही उसे वाड़े में लाये कि बच्चा स्वस्थ हो गया और पितले परिवार – पति, पत्नी व अन्य सब लोगों को महान् हर्ष हुआ और उनका सन्देह दूर हो गया । श्री. पितले अपनी धर्मपत्नी सहित बाबा के दर्शनो को आये और अति विनम्र होकर आदरपूर्वक चरण-वन्दना कर पादसेवन करने लगे । मन ही मन वे बाबा को धन्यवाद दे रहे थे । तब बाबा ने मुस्कराकर कहा किक्या तुम्हारे समस्त विचार और शंकायें मिट गई । जिन्हें विश्वास और धैर्य है, उनकी रक्षा श्री हरि अवश्य करेंगे । श्री. पितले एक धनाढ्य व्यक्ति थे, इसलिये उन्होंने अधिक मात्रा में मिठाई बाँटी और उत्तम फल तथा पान बीड़े बाबा को भेंट किये । श्रीमती पितले सात्विक वृत्ति की महिला थी । वे एक स्थाने पर बैठकर बाबा की ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से निहारा करती थी । उनकी आँखों से प्रसन्नता के आँसू गिरते थे । उनका मृदु और सरल स्वभाव देखकर बाबा अति प्रसन्न हुए । ईश्वर के समान ही सन्त भी भक्तों के अधीन है । जो उनकी शरण में जाकर उनका अनन्य भाव से पूजन करते है, उनकी रक्षा सन्त करते है । शिरडी में कुछ दिन सुखपूर्वक व्यतीत कर पितले परिवार बाबा के समीप मसजिद में गया और चरण-वन्दना कर शिरडी से प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने उन्हें उदी देकर आर्शीवाद दिया । पितले को पास बुलाकर वे कहने लगे । बापू । पहले मैंने तुम्हें दो रुपये दिये थे और अब मैं तुम्हे तीन रुपये देता हूँ । इन्हें अपने पूजन में रखकर नित्य इनका पूजन करो । इससे तुम्हारा कल्याँण होगा । श्री. पितले ने उनहें प्रसादस्वरुप ग्रहण कर, बाबा को पुनः साष्टांग नमस्कार किया तथा आशीष के लिये प्रार्थना की । उन्हें एक विचार भी आया कि प्रथम अवसर होने के कारण मैं इसका अर्थ समझने में असमर्थ हूँ कि दो रुपये मुझे पहले कब दिये थे ।

वे इस बात का स्पष्टीकरण चाहते थे, परन्तु बाबा मौन ही रहे । बम्बई पहुँचने पर उन्होंने अपनी वृदृ माता को शिरडी की विस्तृत वार्ता सुनाई और उन दो रुपयों की समस्या भी उनसे कही । उनकी माता को भी पहले-पहल तो कुछ समझ में न आया, परन्तु पूरी तरह विचार करने पर उन्हें एक पुरातन घटना की स्मृति हो आई, जिसने यतह समस्या हल कर दी । उनकी वृदृ माता कहने लगी कि जिस प्रकार तुम अपने पुत्र को लेकर श्री साईबाबा के दर्शनार्थ गये थे, ठीक उसी प्रकार तुम्हें लेकर तुम्हारे पिता अनेक वर्षों पहले अक्कलकोटकर महाराज के दर्शनार्थ गये थे । महाराज पूर्ण सिदृ, योगी, त्रिकालज्ञ और बड़े उदार थे । तुम्हारे पिता परम भक्त थे । इस कारण उनकी पूजा स्वीकार हुई । तब महाराज ने उन्हें पूजनार्थ दो रुपये दिये थे, जिनकी उन्होंने जीवनपर्यन्त पूजा की । उनके पश्चात् उनकी पूजा यथाविधि न हो सकी और वे रुपये खो गये । कुछ दिनों के उपरान्त उनकी पूर्ण विसमृति भी हो गई । तुम्हारा सौभाग्य है, जो श्री अक्कलकोटकर महाराज ने साईस्वरप में तुम्हें अपने कर्तव्यों और पूजन की स्मृति कराकर आपत्तियों से मुक्त कर दिया । अब भविष्य में जागरुक रहकर समस्त शंकाएँ और सोच विचार छोड़कर अपने पूर्वजों को स्मरण कर रिवाजों का अनुसरण कर, उत्तम प्रकार का आचरण अपनाओ । अपने कुलदेव तथा इन रुपयों की पूजा कर उनके यथार्थ स्वरुप को समझो और सन्तों का आर्शीवाद ग्रहण करने में गर्व मानो । श्री साई समर्थ ने दया कर तुम्हारे हृदय में भक्ति काबीजारोपण कर दिया है और अब तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम उसकी वृद्घि करो । माता के मधुर वचनामृत का पान कर श्री. पितले को अत्यन्त हर्ष हुआ । उन्हे बाबा की सर्वकालज्ञता विदित हो गई और उनके श्री दर्शन का भी महत्व ज्ञात हो गया । इसके पश्चात वे अपने व्यवहार में अधिक सावधान हो गये ।


श्री. आंबडेकर

पूने के श्री. गोपाल नारायण आंबडेकर बाबा के परम भक्तों में से एक थे, जो ठाणे जिला और जव्हार स्टेट के आबकारी विभाग में दस वर्षों से कार्य करते थे । वहाँ से सेवानिवृत होने पर उन्होंने अन्य नौकरी ढूँढी, परन्तु वे सफल न हुए । तब उन्हें दुर्भाग्य ने चारों ओर से घेर लिया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी अधिक दयनीय हो गई । ऐसी परिस्थिति में उन्होंने सात वर्ष व्यतीत किये । वे प्रति वर्ष शिरडी जाते और अपनी दुःखदायी कथा वार्ता बाबा को सुनाया करते थे । सन् 1916 में तो उनकी स्थिति और भी अधिक चिन्ताजनक हो गई । तब उन्होंने शिरडी जाकर आत्महत्या करने की ठानी । इसलिये वे अपनी पत्नी को साथ लेकर शिरडी आये और वहाँ दो मास तक ठहरे । एक रात्रि को दीक्षितवाड़े के सामने एक बैलगाड़ी पर बैठे-बैठे उन्होंने कुएँ में गिर कर प्राणान्त करने का और साथ ही बाबा ने उनकी रक्षा करने का निश्चय किया । वहीं समीप ही एक भोजनालय के मालिक श्री. सगुण मेरु नायक ठीक उसी समय बाहर आकर उनसे इस प्रकार वार्तालाप करने लगे कि क्या आपने कभी श्री अक्कलकोट महाराज की जीवनी पढ़ी है । सगुण से पुस्तक लेकर उन्होंने पढ़ना प्रारम्भ कर दिया । पुस्तक पढ़ते-पढ़ते वे एक ऐसी कथा पर पहुँचे, जो इस प्रकार थी – श्री अक्कलकोटकर महाराज के जीवन काल में एक व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित था । जब वह किसी प्रकार भी कष्ट सह न सका तो वह बिलकुल निराश हो गया और एक रात्रि को कुएँ में कूद पड़ा । तत्क्षण ही महाराज वहाँ पहुँच गये और उन्होंने स्वयं अपने हाथों से उसे बाहर निकाला । वे उसी समझाने लगे कि तुम्हें अपने शुभ अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना चाहिए । यदि भोग अपूर्ण रह गया तो पुनर्जन्म धारण करना पड़ेगा, इसलिये मृत्यु से यह श्रेयस्कर है कि कुछ काल तक उन्हें सहन कर पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग समाप्त कर सदैव के लिये मुक्त हो जाओ ।

यह सामयिक और उपयुक्त कथा पढ़कर आम्बडेकर को महान् आश्चर्य हुआ और वे द्रवित हो गये ।

यदि इस कथा द्घारा उन्हें बाबा का संकेत प्राप्त न होता तो अभी तक उनका प्राणान्त ही हो गया होता । बाबा की व्यापकता और दयालुता देखकर उनका विश्वासस दृढ़ हो गया और वे बाबा के परम भक्त बन गये । उनके पिता श्री अक्क्लकोटकर महाराज के शिष्य थे और बाबा की इच्छा भी उन्हें उन्हीं के पद-चिन्हों का अनुसरण कराने की थी । बाबा ने उन्हें आर्शीवाद दिया और अब उनका भाग्य चमक उठा । उन्होंने ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन में निपुणता प्राप्त कर उसमें बहुत उन्नति कर ली और बहुत-सा धन अर्जित करके अपना शेष जीवन सुख और शान्तिपूर्वक व्यतीत किया ।



।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

43 comments:

  1. Om sai ram sacchidananda sadguru sai math maharaja ki jai sai rahem najar karna bacchoka palan karna sai Teri kripa sabpar banaye rakhana om sai ram

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  2. Agree satguru sainath Maharaj ki Jai ..om sai ram 🙏🙏

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  3. Shri sadguru sainatharpanmastu shubham bhavtu
    Om sai ram 🙏🧿🙏

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  4. Om sai ram 💐🎂💐🎂🕉️🎂🕉️🕉️🎂🎂❤️🙏🌹

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  5. Baba kuch Karo kaam ruk gaya mera.jai sai ram

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  6. 🌹𝙅𝘼𝙄 𝙎𝘼𝙄 𝙍𝘼𝙈🙏

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  7. OM SAI NATHAY NAMAH.BABAJI AAP SACHMUCH TRIKALDARSHI HO.BABAJI MUJHHPE SE DUKHH K KALE BADAAL HATA K SUKH SAMRIDHHI KI DHOOPAHALI CHAMAK PRAKASHIT KARIYE.MERE PATI YNHA AAYE AUR HUMARA EK SWASTH PUTRA HO .BABA HAR BHOOL CHHOOK MAF KAR DIJIYE.JIVAN KO KHUSHIYO SE PUNAH BHAR DIJIYE🙏

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  8. HEY SAI BABA JO PAP HO GAYA USKA ME PRAYSHCHIT KRTI HU.HEY BABAJI AMIT KO MERE PASS BHEJIYE WO SHURU KI TARAH MUJHHSE PREM KAREIN AUR HUMARA IVF TREATMENT SAFAL HO AUR EK SWASTH PUTRA HO JAYE BABAJI USKO LEKE HUM SHIRDI AAYENGE JAROOR

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  9. Om Sai Shree Sai Jai Jai Sai

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  10. OM SAI RAM 🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🌹🌺

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  11. Om sri sai prnamastu subham bhabtu..🙏🙏

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  12. Sri Sai ❤️🌷❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🙏❤️🌷

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  13. Om Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram Sai Ram

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  14. Om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  15. OMSAIRAMOMSAIRAMOMSAIRAM. Mora putra Anshuman now CSE B.Tech. doing.Baba , I pray at your feet, you to blessed him so that he can complete B.Tech. with best cgpa and get placement. Pranam at your feet baba 1 crore times.

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  16. om sai ram baba ,om shree anant koti bhramand nayak raja dhiraj yogiraj parabhrama shree sacchidanand sadguru sainath maharaj ki jai ,sadguru dev ki jai.i love u baba and thaank u so so much ,i am so glad u r with me baba,happy thurday baba .

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  17. Om Sai Ram baba🙏baba raksha karo baba. Sab kaam safal ho baba.

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  18. om sai ram🙏🙏

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  19. shri sainathaya namah🙏

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  20. Om sai ram ka mere jeevan mai guru ka sthan jeevanparyant rahega

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  21. om sai ram...🙏🙏ravi m

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  22. Om Sai ram Sai ram Sai ma

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  23. Om Sai Ram💐🙏

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  24. 🙏ॐ साई राम 🙏

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