Thursday 22 December 2011

SAI SATCHARITRA IN HINDI CHAPTER 9

Sai Satcharitra Hindi chap 9

श्री साई सच्चरित्र

अध्याय 9 - विदा होते समय बाबा की आज्ञा का पालन और अवज्ञा करने के परिणामों के कुछ उदाहरण, भिक्षा वृत्ति और उसकी आवश्यकता, भक्तों (तर्खड कुटुम्व) के अनुभव

गत अध्याय के अन्त में केवल इतना ही संकेत किया गया था कि लौटते समय जिन्होंने बाबा के आदेशों का पालन किया, वे सकुशल घर लौटे और जिन्होंने अवज्ञा की, उन्हें दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा । इस अध्याय में यह कथन अन्य कई पुष्टिकारक घटनाओं और अन्य विषयों के सात विस्तारपूर्वक समझाया जायेगा ।


शिरडी यात्रा की विशेषता

शिरडी यात्रा की एक विशेषता यह थी कि बाबा की आज्ञा के बिना कोई भी शिरडी से प्रस्थान नहीं कर सकता था और यदि किसी ने किया भी, तो मानो उसने अनेक कष्टों को निमन्त्रण दे दिया । परन्तु यदि किसी को शिरडी छोड़ने की आज्ञा हुई तो फिर वहाँ उसका ठहरना नहीं हो सकता था । जब भक्तगण लौटने के समय बाबा को प्रणाम करने जाते तो बाबा उन्हें कुछ आदेश दिया करते थे, जिनका पालन अति आवश्यक था । यदि इन आदेशों की अवज्ञा कर कोई लौट गया तो निश्चय ही उसे किसी न किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता था । ऐसे कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं ।


तात्या कोते पाटील

एक समय तात्या कोते पाटील गाँगे में बैठकर कोपरगाँव के बाजार को जा रहे थे । वे शीघ्रता से मसजिद में आये । बाबा को नमन किया और कहा कि मैं कोपरगाँव के बाजार को जा रहा हूँ । बाबा ने कहा, शीघ्रता न करो, थोड़ा ठहरो । बाजार जाने का विचार छोड़ दो और गाँव के बाहर न जाओ । उनकी उतावली को देखकर बाबा ने कहा अच्छा, कम से कम शामा को साथ लेते जाओ । बाबा की आज्ञा की अवहेलना करके उन्होंने तुरन्त ताँगा आगे बढ़ाया । ताँगे के दो घोड़ो में से एक घोड़ा, जिसका मूल्य लगभग तीन सौ रुपया था, अति चंचल और द्रुतगामी था । रास्ते में सावली विहीर ग्राम पार करने के पश्चात ही वह अधिक वेग से दौड़ने लगा । अकस्मात ही उसकी कमी में मोच आ गई । वह वहीं गिर पड़ा । यघरि तात्या को अधिक चोट तो न आई, परन्तु उन्हें अपनी साई माँ के आदेशों की स्मृति अवश्य हो आई । एक अन्य अवसर पर कोल्हार ग्राम को जाते हुए भी उन्होंने बाबा के आदेशों की अवज्ञा की थी और ऊपर वर्णित घटना के समान ही दुर्घटना का उन्हें सामना करना पड़ता था ।


एक यूरोपियन महाशय

एक समय बम्बई के एक यूरोपियन महाशय, नानासाहेब चांदोरकर से परिचय-पत्र प्राप्त कर किसी विशेष कार्य से शिरडी आये । उन्हें एक आलीशान तम्बू में ठहराया गया । वे तो बाबा के समक्ष नत होकर करकमलों का चुम्बन करना चाहते थे । इसी कारण उन्होंने तीन बार मसजिद की सीढ़ियों पर चढ़ने का प्रयत्न किया, परन्तु बाबा ने उन्हें अपने समीप आने से रोक दिया । उन्हें आँगन में ही ठहरने और वहीं से दर्शन करने की आज्ञा मिली । इस विचित्र स्वागत से अप्रसन्न होकर उन्होंने शीघ्र ही शिरडी से प्रस्थान करने का विचार किया और बिदा लेने के हेतु वे वहाँ आये । बाबा ने उन्हें दूसरे दिन जाने और शीघ्रता न करने की राय दी । अन्य भक्तों ने भी उनसे बाबा के आदेश का पालन करने की प्रार्थना की । परन्तु वे सब की उपेक्षा कर ताँगे में बैठकर रवाना हो गये । कुछ दूर तक तो घोड़े ठीक-ठीक चलते रहे । परन्तु सावली विहीर नामक गाँव पार करने पर एक बाइसिकिल सामने से आई, जिसे देखकर घोड़े भयभीत हो गये और द्रुत गति से दौड़ने लगे । फलस्वरुप ताँगा उलट गया और महाशय जी नीचे लुढ़क गये और कुछ दूर तक ताँगे के साथ-साथ घिसटते चले गये । लोगों ने तुरन्त अस्पताल में शरण लेनी पड़ी । इस घटना से भक्तों ने शिक्षा ग्रहण की कि जो बाबा के आदेशों की अवहेलना करते हैं, उन्हें किसी न किसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार होना ही पड़ता है और जो आज्ञा का पालन करते है, वे सकुशल और सुखपूर्वक घर पहुँच जाते हैं ।


भिक्षावृत्ति की आवश्यकता

अब हम भिक्षावृत्ति के प्रश्न पर विचार करेंगें । संभव है, कुछ लोगों के मन में सन्देह उत्पन्न हो कि जब बाबा इतने श्रेष्ठ पुरुष थे तो फिर उन्होंने आजीवन भिक्षावृत्ति पर ही क्यों निर्वाह किया ।

इस प्रश्न को दो दृष्टिकोण समक्ष रख कर हल किया जा सकता हैं ।

पहला दृष्टिकोण – भिक्षावृत्ति पर निर्वाह करने का कौन अधिकारी है ।

शास्त्रानुसार वे व्यक्ति, जिन्होंने तीन मुख्य आसक्तियों –

कामिनी
कांचन और
कीर्ति का त्याग कर, आसक्ति-मुक्त हो सन्यास ग्रहण कर लिया हो

– वे ही भिक्षावृत्ति के उपयुक्त अधिकारी है, क्योंकि वे अपने गृह में भोजन तैयार कराने का प्रबन्ध नहीं कर सकते । अतः उन्हें भोजन कराने का भार गृहस्थों पर ही है । श्री साईबाबा न तो गृहस्थ थे और न वानप्रस्थी । वे तो बालब्रहृमचारी थे । उनकी यह दृढ़ भावना थी कि विश्व ही मेरा गृह है । वे तो स्वया ही भगवान् वासुदेव, विश्वपालनकर्ता तथा परब्रहमा थे । अतः वे भिक्षा-उपार्जन के पूर्ण अधिकारी थे ।


दूसरा दृष्टिकोण

पंचसूना – (पाँच पाप और उनका प्रायश्चित) – सब को यह ज्ञात है कि भोजन सामग्री या रसोई बनाने के लिये गृहस्थाश्रमियों को पाँच प्रकार की क्रयाएँ करनी पड़ती है –

कंडणी (पीसना)
पेषणी (दलना)
उदकुंभी (बर्तन मलना)
मार्जनी (माँजना और धोना)
चूली (चूल्हा सुलगाना)

इन क्रियाओं के परिणामस्वरुप अनेक कीटाणुओं और जीवों का नाश होता है और इस प्रकार गृहस्थाश्रमियों को पाप लगता है । इन पापों के प्रायश्चित स्वरुप शास्त्रों ने पाँच प्रकार के याग (यज्ञ) करने की आज्ञा दी है, अर्थात्

ब्रहमयज्ञ अर्थात् वेदाध्ययन - ब्रहम को अर्पण करना या वेद का अछ्ययन करना
पितृयज्ञ – पूर्वजों को दान ।
देवयज्ञ – देवताओं को बलि ।
भूतयज्ञ – प्राणियों को दान ।
मनुष्य (अतिथि) यज्ञ – मनुष्यों (अतिथियों) को दान ।

यदि ये कर्म विधिपूर्वक शास्त्रानुसार किये जायें तो चित्त शुदृ होकर ज्ञान और आत्मानुभूति की प्राप्ति सुलभ हो जाती हैं । बाबा दृार-दृार जाकर गृहस्थाश्रमियों को इस पवित्र कर्तव्य की स्मृति दिलाते रहते थे और वे लोग अत्यन्त भाग्यशाली थे, जिन्हें घर बैठे ही बाबा से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल जाता था ।


भक्तों के अनुभव अब हम अन्य मनोरंजक विषयों का वर्णन करते हैं । भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है – जो मुझे भक्तिपूर्वक केवल एक पत्र, फूल, फल या जल भी अर्पण करता है तो मैं उस शुदृ अन्तःकरण वाले भक्त के दृारा अर्पित की गई वस्तु को सहर्ष स्वीकार कर लेता हूँ ।

यदि भक्त सचमुच में श्री साईबाबा की कुछ भेंट देना चाहता था और बाद में यदि उसे अर्पण करने की विस्मृति भी हो गई तो बाबा उसे या उसके मित्र दृारा उस भेंट की स्मृति कराते और भेंट देने के लिये कहते तथा भेंट प्राप्त कर उसे आशीष देते थे । नीचे कुछ ऐसी कुछ ऐसी घटनाओं का वर्णन किया जाता हैं ।


तर्खड कुटुम्ब (पिता और पुत्र) श्री रामचन्द्र आत्माराम उपनाम बाबासाहेब तर्खड पहले प्रार्थनासमाजी थे । तथारि वे बाबा के परमभक्त थे । उनकी स्त्री और पुत्र तो बाबा के एकनिष्ठ भक्त थे । एक बार उन्होंने ऐसा निश्चय किया कि पुत्र व उसकी माँ ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ शिरडी में ही व्यतीत करें । परन्तु पुत्र बाँद्रा छोड़ने को सहमत न हुआ । उसे भय था कि बाबा का पूजन घर में विधिपूर्वक न हो सकेगा, क्योंकि पिताजी प्रार्थना-समाजी है और संभव है कि वे श्री साईबाबा के पूजनादि का उचित ध्यान न रख सके । परन्तु पिता के आश्वासन देने पर कि पूजन यथाविधि ही होता रहेगा, माँ और पुत्र ने एक शुक्रवार की रात्रि में शिरडी को प्रस्थान कर दिया ।

दूसरे दिन शनिवार को श्रीमान् तर्खड ब्रहमा मुहूर्त में उठे और स्नानादि कर, पूजन प्रारम्भ करने के पूर्व, बाबा के समक्ष साष्टांग दण्डवत् करके बोले- हे बाबा मैं ठीक वैसा ही आपका पूजन करता रहूँगा, जैसे कि मेरा पुत्र करता रहा है, परन्तु कृपा कर इसे शारीरिक परिश्रम तक ही सीमित न रखना । ऐसा कहकर उन्होंने पूजन आरम्भ किया और मिश्री का नैवेघ अर्पित किया, जो दोपहर के भोजन के समय प्रसाद के रुप में वितरित कर दिया गया ।

उस दिन की सन्ध्या तथा अगला दिन इतवार भी निर्विघ्र व्यतीत हो गया । सोमवार को उन्हें आँफिस जाना था, परन्तु वह दिन भी निर्विघ्र निकल गया । श्री तर्खड ने इस प्रकार अपने जीवन में कभी पूजा न की थी । उनके हृदय में अति सन्तोष हुआ कि पुत्र को दिये गये वचनानुसार पूजा यथाक्रम संतोषपूर्वक चल रही है । अगले दिन मंगलवार को सदैव की भाँति उन्होंने पूजा की और आँफिस को चले गये । दोपहर को घर लौटने पर जब वे भोजन को बैठे तो थाली में प्रसाद न देखकर उन्होंने अपने रसोइये से इस सम्बन्ध में प्रश्न किया । उसने बतलाया कि आज विस्मृतिवश वे नैवेघ अर्पण करना भूल गये है । यह सुनकर वे तुरन्त अपने आसन से उठे और बाबा को दण्वत् कर क्षमा याचना करने लगे तथा बाबा से उचित पथ-प्रदर्शन न करने तथा पूजन को केवल शारीरिक परिश्रम तक ही सीमित रखने के लिये उलाहना देने लगे । उन्होंने संपूर्ण घटना का विवरण अपने पुत्र को पत्र दृारा कुचित किया और उससे प्रार्थना की कि वह पत्र बाबा के श्री चरणों पर रखकर उनसे कहना कि वे इस अपराध के लिये क्षमाप्रार्थी है । यह घटना बांद्रा में लगभग दोपहर को हुई थी और उसी समय शिरडी में जब दोपहर की घटना बाँद्रा में लगभग दोपहर को हुई थी और उसी समय शिरडी में जब दोपहर की आरती प्रारम्भ होने ही वाली थी कि बाबा ने श्रीमती तर्खड से कहा – माँ, मैं कुछ भोजन पाने के विचार से तुम्हारे घर बाँद्रा गया था, दृार में ताला लगा देखकर भी मैंने किसी प्रकार गृह में प्रवेश किया । परन्तु वहाँ देखा कि भाऊ (श्री. तर्खड) मेरे लिये कुछ भी खाने को नहीं रख गये है । अतः आज मैं भूखा ही लौट आया हूँ । किसी को भी बाबा के वचनों का अभिप्राय समझ में नहीं आया, परन्तु उनका पुत्र जो समीप ही खड़ा था, सब कुछ समझ गया कि बाँद्रा में पूजन में कुछ तो भी त्रुटि हो गई है, इसलिये वह बाबा से लौटने की अनुमति माँगने लगा । परन्तु बाबा ने आज्ञा न दी और वहीं पूजन करने का आदेश दिया । उनके पुत्र ने शिरडी में जो कुछ हुआ, उसे पत्र में लिख कर पिता को भेजा और भविष्य में पूजन में सावधानी बर्तने के लिये विनती की । दोनों पत्र डाक दृारा दूसरे दिन दोनों पश्रों को मिले । किया यह घटना आश्चर्यपूर्ण नहीं है ।

श्रीमती तर्खड

एक समय श्रीमती तर्खड ने तीन वस्तुएँ अर्थात्

भरित (भुर्ता यानी मसाला मिश्रित भुना हुआ बैगन और दही)
काचर्या (बैगन के गोल टुकड़े घी में तले हुए) और
पेड़ा (मिठाई) बाबा के लिये भेजी । बाबा ने उन्हे किस प्रकार स्वीकार किया, इसे अब देखेंगे ।

बाँद्रा के श्री रघुवीर भास्कर पुरंदरे बाबा के परम भक्त थे । एक समय वे शिरडी को जा रहे थे । श्रीमती तर्खड ने श्रीमती पुरंदरे को दो बैगन दिये और उनसे प्रार्थना की कि शिरडी पहुँचने पर वे एक बैगन का भुर्ता और दूसरे का काचर्या बनाकर बाबा को भेंट कर दें । शिरडी पहुँचने पर श्रीमती पुरंदरे भुर्ता लेकर मसजिद को गई । बाबा उसी समय भोजन को बैठे ही थे । बाबा को वह भुर्ता बड़ा स्वादिष्ट प्रतीत हुआ, इस कारण उन्होंने थोडा़-थोड़ा सभी को वितरित किया । इसके पश्चात ही बाबा ने काचर्या माँग रहे है । वे बड़े राधाकृष्णमाई के पास सन्देशा भेजा गया कि बाबा काचर्या माँग रहे है । वे बड़े असमंजस में पड़ गई कि अव क्या करना चाहिये । बैंगन की तो अभी ऋतु ही नीं है । अब समस्या उत्पन्न हुई कि बैगन किस प्रकार उपलब्ध हो । जब इस बात का पता लगाया गया कि भर्ता लाया कौन था । तब ज्ञात हुआ कि बैगन श्रीमती पुरंदरे लाई थी तथा उन्हें ही काचर्या बनाने का कार्य सौंपा गया था । अब प्रत्येक को बाबा की इस पूछताछ का अभिप्राय विदित हो गया और सब को बाबा की सर्वज्ञता पर महान् आश्चर्य हुआ ।

दिसम्बर, सन् 1915 में श्री गोविन्द बालाराम मानकर शिरडी जाकर वहाँ अपने पिता की अन्त्येष्चि-क्रिया करना चाहते थे । प्रस्थान करने से पूर्व वे श्रीमती तर्खड से मिलने आये । श्रीमती तर्खड बाबा के लिये कुछ भेंट शिरडी भेजना चाहती थी । उन्होंने घर छान डाला, परन्तु केवल एक पेड़े के अतिरिक्त कुछ न मिला और वह पेड़ा भी अर्पित नैवेघ का था । बालक गोविन्द ऐसी परिस्थिति देखकर रोने लगा । परन्तु फिर भी अति प्रेम के कारण वही पेड़ा बाबा के लिये भेज दिया । उन्हें पूर्ण विश्वास था कि बाबा उसे अवश्य स्वीकार कर लेंगे । शिरडी पहुँचने पर गोविन्द मानकर बाबा के दर्शनार्थ गये, परन्तु वहाँ पेड़ा ले जाना भूल गये । बाबा यह सब चुपचाप देखते रहे । परन्तु जब वह पुनः सन्ध्या समय बिना पेड़ा लिये हुए वहाँ पहुँचा तो फिर बाबा शान्त न रह सके और उन्होंने पूछा कि तुम मेरे लिये क्या लाये हो । उत्तर मिला – कुछ नहीं । बाबा ने पुनः प्रश्न किया और उसने वही उपयुर्क्त उत्तर फिर दुहरा दिया । अब बाबा ने स्पष्ट शब्दों में पूछा, क्या तुम्हें माँ (श्रीमती तर्खड) ने चलते समय कुछ मिठाई नहीं दी थी । अब उसे स्मृति हो आई और वह बहुत ही लज्जित हुआ तथा बाबा से क्षमा-याचना करने बाबा ने तुरन्त ही पेड़ा खा लिया । वह दौड़कर शीघ्र ही वापस गया और पेड़ा लाकर बाबा के सम्मुख रख दिया । बाबा ने तुरन्त ही पेड़ा खा लिया । इस प्रकार श्रीमती तर्खड की भेंट बाबा ने स्वीकार की और भक्त मुझ पर विश्वास करता है इसलिये मैं स्वीकार कर लेता हूँ । यह भगवदृचन सिदृ हुआ ।


बाबा का सन्तोषपूर्वक भोजन

एक समया श्रीमती तर्खड शिरडी आई हुई थी । दोपहर का भोजन प्रायः तैयार हो चुका था और थालियाँ परोसी ही जा रही थी कि उसी समय वहाँ एक भूखा कुत्ता आया और भोंकने लगा । श्रीमती तर्खड तुरन्त उठी और उन्होंने रोटी का एक टुकड़ा कुत्ते को डाल दिया । कुत्ता बड़ी रुचि के साथ उसे खा गया । सन्ध्या के समय जब वे मसजिद में जाकर बैठी तो बाबा ने उनसे कहा माँ आज तुमने बड़े प्रेम से मुझे खिलाया, मेरी भूखी आत्मा को बड़ी सान्त्वना मिली है । सदैव ऐसा ही करती रहो, तुम्हें कभी न कभी इसका उत्तम फल अवश्य प्राप्त होगा । इस मसजिद में बैठकर मैं कभी असत्य नहीं बोलूँगा । सदैव मुझ पर ऐसा ही अनुग्रह करती रहो । पहले भूखों को भोजन कराओ, बाद में तुम भोजन किया करो । इसे अच्छी तरह ध्यान में रखो । बाबा के शब्दों का अर्थ उनकी समझ में न आया, इसलिये उन्होंने प्रश्न किया, भला । मैं किस प्रकार भोजन करा सकती हूँ मैं तो स्वयं दूसरों पर निर्भर हूँ और उन्हें दाम देकर भोजन प्राप्त करती हूँ । बाबा कहने लगे, उस रोटी को ग्रहण कर मेरा हृदय तृप्त हो गया है और अभी तक मुझे डकारें आ रही है । भोजन करने से पूर्व तुमने जो कुत्ता देखा था और जिसे तुमने रोटी का टुकडा़ दिया था, वह यथार्थ में मेरा ही स्वरुप था और इसी प्रकार अन्य प्राणी (बिल्लियाँ, सुअर, मक्खियाँ, गाय आदि) भी मेरे ही स्वरुप हैं । मै ही उनके आकारों में ड़ोल रहा हूँ । जो इन सब प्राणियों में मेरा दर्शन करता है, वह मुझे अत्यन्त प्रिय है । इसलिये दैत या भेदभाव भूल कर तुम मेरी सेवा किया करो ।

इस अमृत तुल्य उपदेश को ग्रहण कर वे द्रवित हो गई और उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, गला रुँध गया और उनके हर्ष का पारावार न रहा ।


शिक्षा

समस्त प्राणियों में ईश्वर-दर्शन करो – यही इस अध्याय की शिक्षा है । उपनिषद्, गीता और भागवत का यही उपदेश है कि ईशावास्यमिदं सर्वम् – सब प्राणियों में ही ईश्वर का वास है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव करो ।

अध्याय के अन्त में बतलाई घटना तथा अन्य अनेक घटनाये, जिनका लिखना अभी शेष है, स्वयं बाबा ने प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत कर दिखाया कि किस प्रकार उपनिषदों की शिक्षा को आचरण में लाना चाहिये ।

इसी प्रकार श्री साईबाबा शास्त्रग्रंथों की शिक्षा दिया करते थे ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

170 comments:

  1. om sai ram jai sai ram shri sai ram jai jai sai ram

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  2. bolo sai nath maharaj ki jai

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  3. SADGURU SAINATH MAHARAJ KI JAI

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  4. Waiting for Sai Miracle ��

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  5. OM Sal Ram💐🙏🙏🌹🙏🙏

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  6. Sai Sai Sai🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐

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  7. Om sai ram....thanks sai baba..

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  8. Om sai ram shred sadchidanand sadguru sainath maharaja ki jaikripa banaye rakhana mere param pita sai bhagavan tumhari sharan me natamastak

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  9. Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram, Jai sai Ram

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  10. OMMMMMMMMMMMMMMMMMM SAIIIIIIIIIII RAMMMMM.............MERE SAI..........HUM SABKE SAI............HUM SAI K

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    1. Om Sai ram
      Om Sai Ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram

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  11. Omomsai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om sai ram Om

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  12. Rehem najar sai🙏🌹🙏om sai🙏🌹🙏

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  13. Apni nazar bnaye rakhna baba.Sai rahem krna🙏🙏🌹🌹🙏🙏🌹🌹🙏🙏 baba apni kripa bnaye rakhna🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹om sai 🌹🙏om sai🌹🙏jai jai sai 🌹🙏saisai🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

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  14. Om sai ram 🕉️🎂🕉️🎂💐🎂🕉️🎂🕉️🎂😊🕉️🕉️🕉️🕉️🙏

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  15. Dil bahut dukhi ho jata hai pata nahi kyo

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    1. Jai Sai Ram, Baba par pura bharosa rakho Baba se Jyada Dayalu koi nahi hai

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  16. Om sai ram. Baba rakcha krna🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  17. 🌹𝙟𝙖𝙞 𝙨𝙖𝙞 𝙍𝘼𝙈🙏

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  18. OM SAI RAAM JI 😊🙏🌹🌹🙏😊

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  19. Om Sai Ram 🌼🌸🌼🌸🌼

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  20. mera Sahara mere saiya mere vishwas 🙏 love you so much baba g 🙏

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  21. OM SAI RAM 🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐⚘

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  22. Om sai ram 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  23. Om jai sai ram Ji. Sabka malik ek

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  24. Om Sai Ram 🌹🌹🌹🌹🌹🕉️🕉️🎹🥰🥰😇🤗😍😍😘😘

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  25. Anant Koti BharamanadNayak RajadiRaj ParamBharam Shree SadhGuruji Shree SaiNathji Maharajji Kiji Jayyyyyji🌹🌹🌹🥰🥰😇🤗🤗😍😘😘😘😘😘😘😘🤗🤗🤗🤗🤗😇😇🥰🥰🥰😇😇🥰🕉️🕉️🎻🥁🎸🎸🙏🙏🥳🙏🙏💗💗💗💗🤲🤲🤲🤲🤲👏👏👏☺️🕉️🎹🥰🎻🎻🥁❤️❤️❤️

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  26. om shree sai Samarth 🙏 love you so much baba g 🙏

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  27. Om Shree Saai Nathaye Namah🙏🙏🙏🙏🙏

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  28. Sri Sai 🙏❤️🌷❣️🌷🌼🌹🌻🌻🌻

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  29. ॐ साईं राम

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  30. jai shree sai Samarth 🙏 mera Sahara mere saiya mera vishwas hai 🙏 thankuuuu so much baba g 🙏 love you so much baba g 🙏

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  31. Sri sai 🌹❤️🌹❤️

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  32. Om sai Ram om sai ram om sai ram om sai ram omai ram om sai ram om sai ram om sai ram

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  33. Om sai ram jai sai ram om sai ram jai sai ram

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  34. 🕉OM SAI RAM 🕉🙏🙏

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  35. Om sai ram 🥰🥰🥰🥰🥰

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  36. Om sai Ram 🙏🙏🙏 baba please be with us always

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  37. Om Sai ram 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  38. Sai rhm njr krna bcho ka paln Krna 🙏 I m sorry plz forgive me 😭 thankuuuu you so much baba ji 🙏 love you so much baba ji 🙏

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  39. 🙏sadguru sai nath maharaj ki jai 🙏

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  40. जय साईं राम आप को अनंत अनंत प्रणाम 🙏🙏 पूरे परिवार पर कृपा करो कृपा करो

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  41. OM SAI RAM 🙏🏻 SHUKAR HAI APKA PRABHU... HAMARE SATH REHNA PRABHU... SAHI RAAH DIKHANA DEENANATH

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  42. 🙏🏼❤️om sai ram ❤️🙏🏼

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  43. Sri Sai 🙏❤️🌹🌺🌼💐🌹❤️🙏💐🌺🌼🌷🌻🌼🌺👌🏻

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  44. Om Sai Ram Guru prnam kripa kare Gurubaba

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  45. Om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram om Sai Ram🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  46. Jai shri sai samarth🙏 mera sahara mere saiya mere vishwas hai 🙏I m sorry plz forgive me🙇 I Thanku🙏 I love you so much baba ji🙏 💕👨‍👩‍👦‍👦🙏

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  47. Om Sai Ram 🙏🙏 om sai ram om om sai ram om sai ram 🙏🙏

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  48. OM SAI RAM����

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  49. Om sai ram om sai Ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om om Sai Ram.baba be with us always we are nothing without you 👏👏👏 please babaji

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  50. Om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram,,🙏🙏🙏

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  51. Sri Sai 🙏❤🙏❤🙏❤🙏❤🙏❤

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  52. Om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram.baba pls take care of your child health always 👏👏👏

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  53. SAI BABA JEE
    I have to take care some important work, please bless me that work will done smoothly
    SAI RAM JEE APKO KOTEE KOTEE PARNAM 🙏🙏

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  54. Om Sai Ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram om sai ram 👏👏 Baba 👏 pls be always with us We are nothing without you 👏

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  55. Om sai ram🙏 ji
    Om sai ram🙏 ji

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  56. OM SAI RAM
    SAI RAM KRISHNA HARE
    BABA FORGIVE ME FOR ALL MY SINS PROTECT WORLD N US FROM ALL DISEASES EVILS N SINS WE SURRENDER TO NATH
    HARE RAM HARE KRISHNA HARE SAI HARE DATTATRAYA
    BOW TO SHRI SAI PEACE BE TO ALL🙏🙏

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    1. Om sai ram ji Om sai ram ji Om sai ram ji Om sai ram ji Om sai ram ji Om sai ram ji Om sai ram ji 🙏🙏🌹🌹🙏🙏

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  57. 🌹❤JAI SAI RAM❤🙏🏻

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  58. Baba pls take care of family issues pls Baba 👏👏👏

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  59. 🙏🙏🕉 OM SAI RAM 🕉 🙏 🙏
    BABA PLEASE TAKE CARE OF ME AND MY FAMILY

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  60. Om Sai Ram daya Kare baba

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  61. Om Sai Ram🙏🏻 rakhsha karna prabhu... shama kr do mere apradh🙏🏻

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  62. 🙏❤om sai rakshak sharnam deva🙏❤om sai rakshak sharnam deva🙏❤om sai rakshak sharnam deva🙏❤om sai rakshak sharnam deva🙏❤ om sai rakshak sharnam deva❤🙏

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  63. Om sai ram galti maaf karo

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  64. Raham najar kro ab mere sai 🙏om sai ram g🙏

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  65. SAI NATH JEE, please take care my children, please forgive Kunal’s sins and bless him
    APKO KOTEE KOTEE PARNAM
    I have surrendered myself on your lotus feet🙏🙏

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  66. Om shri Sai Ram mere pyare baba 🌹🌹🙏

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  67. I m sorry🙏 plz forgive me🙇 I thanku 🥰I love you so much baba ji 💏💕

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  68. Sai Baba sada kripa banaye rakhna......

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  69. Om shri Sai Ram mere pyare baba 🍫🌹🍰🙏

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  70. Om shri Sai Ram mere pyare baba 🙏🌹🌹🌹

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  71. Om shri Sai ram mere pyare baba 🌹🌹🙏🌹

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  72. Neelam Mishra
    Om Sai Ram
    Om Sai Ram

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  73. Naman Mishra
    Om Sai Ram
    Om Sai Ram

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  74. Sai tum mere bhagwaan ho

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  75. Om shree sai nathay namah 🙏🙏🌹🌹

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  76. Om Sai Ram❤️🙏

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  77. Om Sai Ram daya Kare baba mughe mukti chaiea baba

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  78. Om sai ram🙏

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  79. Om shri Sai Ram mere pyare baba 🌹🥭🥭🙏🙏🙏

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  80. om sai ram..ravi m

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  81. Guru maharaj aap ki jaijaikaar howe

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  82. Om Sai Ram🙏

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  83. Om sai ram 🙏🙏

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  84. ॐ साई राम 🙏🌹🙏

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  85. Om shri Sai Ram 🌹🙏🌹🌹

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  86. Sai baba aapka aashirwad hum par sada bana rahe🙏🙏

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  87. Om sai ram.........sbka bhala ho

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  88. om sai ram..🙏🙏🙏🙏
    ravi

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  89. Om Sai Ram❤️🙏

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  90. Om Sai Ram my love 💕💕💕💕

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  91. Om sai ram🙏🙏🙏

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  92. Baba hum par sada kripa banaye rakhana 🙏🙏

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  93. Baba mere bachho ki sadiv raksha kare apna aashis unhe pradan kare apna

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  94. Om sai ram.....♥️

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  95. Sai tumhe Mera pranam sweekar ho🙏🙏

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  96. Om Sai Ram💐🙏

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  97. 🙏🏻🌹Om Sai Ram🌹🙏🏻

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  98. Om sai ram ji

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  99. Om Sai maa baba mere bachho ki sadiv raksha kare apna aashis unhe pradan kare

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